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सुवागीत

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      छत्तीसगढ़ी लोकगीतों की बगिया मे एक महकती लोकगीत है -सुवागीत। 'लोकगीत' शब्द से ही स्पष्ट हो जाता है कि एक मौखिक या वाचिक गीत शैली जो परंपरागत रूप से मधुर शीतल सरिता की तरह बहती चली आ रही हो। या कहें कि संगीत की वह शैली जिसकी व्युत्पत्ति या रचियता या रचनाकाल के संबंध मे कोई जानकारी लिपिबद्ध न हो । सुवागीत, गीत और नृत्य दोनों विधाओं का एक बेजोड़ उदाहरण है । हालाँकि वर्तमान समय मे कई नवीन गीत सुवागीत की तर्ज पर बनाए जा रहे हैं।           सुवागीत मे प्रत्येक गीत की शुरुआत                        "तरी नरी नहा नरी, नहना मोर सुवना                                  तरी नरी नहा नरी हो।" से ही होती है एवं आगे भावपक्ष के विविध रंग होते हैं , प्रत्येक गीत मे पृथक -पृथक।              पारंपरिक सुवागीत दीपावली के कुछ दिन पूर्व से शुरू होकर दीपावली की शाम तक समाप्त हो जात...

इतवारी तिहार

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   हमारी छत्तीसगढ़ की संस्कृति सदा  से ही सहिष्णुता का पर्याय रही है, न केवल मनुष्यों के प्रति अपितु अन्य जीवों के प्रति भी। संस्कृति वह फुलवारी है जिसमें विविध परंपराएं, मान्यताएं, लोकरीति, जनश्रुति, लोकव्यवहार एवं समाज के कल्याण के हितार्थ अपनाए गए आदर्श रिवाजों की सुगंध विद्यमान होती है । हमारे छत्तीसगढ़ अंचल मे मनाए जाने वाले विभिन्न आंचलिक एवं स्थानीय त्योहार भी उन्ही मे से एक है । प्रत्येक त्योहार को मनाने के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है । इन्ही ग्रामीण त्योहारों की श्रृंखला मे एक त्योहार है इतवारी तिहार । इस त्योहार की मान्यता छत्तीसगढ़ अंचल के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों मे भिन्न-भिन्न हो सकती है , इसमे कोई दो राय नही। अब कहा गया है न "कोस कोस मे पानी बदले......" इस इतवारी के संबंध मे मैने जो बातें अपने बुजुर्गों से सुनी है मै उसके संबंध मे कुछ बातें बताने का प्रयास कर रहा हूॅ । इतवारी तिहार का शाब्दिक अर्थ होता है 'इतवार का त्योहार ' या इतवार उत्सव। "इतवारी तिहार" की तरह ही बुधवारी या सोमवारी तिहार भी हो होते हैं। इतवारी तिहार को मनाने के पीछे मान्य...