सुवागीत
छत्तीसगढ़ी लोकगीतों की बगिया मे एक महकती लोकगीत है -सुवागीत। 'लोकगीत' शब्द से ही स्पष्ट हो जाता है कि एक मौखिक या वाचिक गीत शैली जो परंपरागत रूप से मधुर शीतल सरिता की तरह बहती चली आ रही हो। या कहें कि संगीत की वह शैली जिसकी व्युत्पत्ति या रचियता या रचनाकाल के संबंध मे कोई जानकारी लिपिबद्ध न हो । सुवागीत, गीत और नृत्य दोनों विधाओं का एक बेजोड़ उदाहरण है । हालाँकि वर्तमान समय मे कई नवीन गीत सुवागीत की तर्ज पर बनाए जा रहे हैं। सुवागीत मे प्रत्येक गीत की शुरुआत "तरी नरी नहा नरी, नहना मोर सुवना तरी नरी नहा नरी हो।" से ही होती है एवं आगे भावपक्ष के विविध रंग होते हैं , प्रत्येक गीत मे पृथक -पृथक। पारंपरिक सुवागीत दीपावली के कुछ दिन पूर्व से शुरू होकर दीपावली की शाम तक समाप्त हो जात...